गुरु गुरुवा और सद्गुरु की पहचान कैसे करे?
संसार मे तीन प्रकार के गुरु होते हैं- गुरु, गुरुवा और सद्गुरु। माता-पिता हमारे प्रथम गुरु है, जो हमें प्यार से लालन-पालन कर संसार के कई प्रकार के कार्य-व्यवहार की शिक्षा देते हैं। सांसारिक बहुत-सी चीजों की जानकारी बच्चों को देनेवाले, उनको बोलना-चलना सिखलाने वाले प्रथम गुरु माता-पिता है। विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्विद्यालयों में पुस्तकीय ज्ञान देने वाले दूसरे गुरु शिक्षा- गुरु होते हैं। एक अन्य गुरु होते हैं, जो मानव को विविध धर्मो की जंजीरों में जकड़ देते हैं। अनेक प्रकार की पूजा-पाठ, व्रत-उपवास, तीर्थाटन आदि में जीवों को उलझाए रखने का काम गुरुवा का ही है। योग, अध्यात्म के नाम पर विविध प्रकार का ध्यान, मन, बुद्धि, इन्द्रिय तथा कल्पना के आधार पर सिखलाने का काम इन गुरुवा का ही है। वाणी से ॐ, निरन्जन, सोहम, शिवोहम, शक्ति, ररं, राम, कृष्ण, विष्णु, हनुमान, देवी, दुर्गा, काली, भवानी आदि का नाम और मन्त्रो का जाप, पूजा-पाठ बतलाकर जीवों को फंसाने वाले ये गुरुवा होते हैं। अपने को गुरु सिद्ध करने के लिए शास्त्रों का प्रमाण दिखाते हैं।और साथ ही साथ डराते-धमकाते भी है कि अगर तुमने दूसरा गुरु किया तो नरक में गिरोगे तुम्हे भगवान कहीं शरण नहीं देँगे।वे अनेक प्रकार के अपना। भेष बनाए रखते हैं। अनेक प्रकार के रंगीन वस्त्र लाल, गैरिक, पिला, काला, टिका, चन्दन, त्रिशूल, डमरू, वंशी, खप्पर धारण किये रहते हैं। अनेक प्रकार के जटा-जुट,दाढ़ी-मूछें बढ़ाकर रखते हैं। शरीर पर रख-भभूति पोत कर रखते हैं। कहने का मतलब कि इस प्रकार के विविध वेष धारण कर अपने को बहुत बड़े सिद्ध महात्मा होने का प्रदर्शन करते हैं। जन-सामान्य से पूजा भेट, वस्त्र-रुपया चढ़ावा स्वीकार कर उन्हें उपर्युक्त साधनों में लगा रखते हैं। इनको तो स्वयं ज्ञान नहीं है कि परमात्मा क्या है? परमात्मा-प्राप्ति का साधन क्या है? तब भला ये दूसरों को इस सम्बन्ध में क्या ज्ञान दे सकते हैं? ये स्वयं मरणधर्मा है। बार-बार जन्म-मरण के चक्र में फँसे है। वे अन्य ऐसे व्यक्तियों को जन्म-मृत्यु, शुभाशुभ कर्म के बन्धन से कैसे मुक्त कर सकते हैं?वे जो स्वयं जीवन्मुक्त नहीं है, तब अन्य संसारी लोगों को कैसे मुक्त कर सकते हैं? यह कार्य तो केवल और केवल सद्गुरु का है, जो शुद्ध, बुद्ध, मुक्तस्वरूप साक्षात परम् प्रभु ही है। जो मायालोक अर्थात प्रकृति-मण्डल से छुड़ाकर चेतन अमरलोक में निवास करा दे, उसी को सद्गुरु जानना चाहिए। उन्ही के पास भक्ति-मुक्ति सबकुछ है। वह सद्गुरु मात्र सेवा से प्रसन्न हो जाता है। उनके लिए रुपया-पैसा, धन-दौलत कुछ भी मायने नहीं रखता। अतः वही शरण्य, वरेण्य एवं सुसेव्य है, अन्य कोई भी योगी, महात्मा, गुरु, अथवा गुरुवा नहीं।
जिज्ञासु मित्रों मुझे उमीद है कि उक्त प्रश्न का उत्तर आपको मिल गया होगा। आपके लिए इस प्रश्न का उत्तर खोजने में मुझे कई किताबों को उलटना पड़ा। मेरा मेहनत तभी सार्थक होगा जब आप सद्गुरु की शरण मे आ जायेंगे।
दुर्लभ सद्गुरु मिलन है, भाग्यवान नर पाय।
देव सदाफल हरि कृपा, तब अमरापुर जाय।। "जय हो"
Good post
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Yoga post nice
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Nice post bro
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