"एक संदेश: परोपकार की महिमा"
कहानी का आरंभ होता है एक छोटे से गाँव में, जहाँ एक युवक नामक "राम" निवास करता था। राम का जीवन साधारण था, उसके परिवार के सदस्य खेती के काम में व्यस्त रहते थे। राम की माता ने उसे संजीवनी वृक्ष के संबंध में सुनाया था, जिसके फलों के सेवन से मनुष्य को जीवनदान मिलता है।
एक दिन, गाँव के पुराने मंदिर के पास एक वृक्ष के नीचे राम बैठा था। वह विचारमग्न था कि कैसे उसकी आवाज़ से जीवन में कुछ परिवर्तन लाया जा सकता है। तभी एक बूढ़ा व्यक्ति उसके पास आया। बूढ़े के हाथ में था एक मोरला, जिसमें चाँदी के सिक्के भरे हुए थे।
राम ने पुराने व्यक्ति से पूछा, "आप कहाँ जा रहे हैं, दादाजी?"
बूढ़े ने मुस्कुराते हुए कहा, "बेटा, मैं यह मोरला लेकर जा रहा हूँ। इसमें सोने और चाँदी के सिक्के हैं। मैं इसे बेचकर कुछ खाने के लिए पैसे कमाऊँगा।"
राम की आँखों में एक नई रोशनी आई। वह बूढ़े से बोला, "दादाजी, क्या आप इस मोरले को मुझे बेच सकते हैं?"
बूढ़े ने आश्चर्यचकित होकर कहा, "तुम्हें इसमें क्या जरूरत है, बेटा? तुम्हारे पास तो कुछ नहीं है।"
राम ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया, "दादाजी, मैं इस मोरले के फलों को बीच कर अधिक वृद्धाश्रम के लिए देना चाहता हूँ।"
बूढ़े का चेहरा चमक उठा। वह राम को वह मोरला दे दिया और उसका आशीर्वाद देते हुए कहा, "बेटा, तुम्हारी यह नेक इच्छा तुम्हें भगवान का आशीर्वाद देगी। जाओ, और अपने सपनों को पूरा करो।"
राम ने धन्यवाद कहते हुए मोरले को लेकर घर लौट आया। उसने मोरले के फलों को बेचकर पैसे जुटाए और वृद्धाश्रम को दिए।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि छोटी-छोटी इच्छाओं और परिश्रम से ही हम अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं। बच्चों की सिखाई, वृद्धाओं की सेवा और पर्यावरण संरक्षण की भावना समाज को सही दिशा में आगे बढ़ाने में
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