विश्व के सभी लोग इस पृथ्वी रूपी जहाज पर सवार सहयात्री हैं। सहयोग एवं मैत्री की इस भावना से शान्ति आन्दोलन के प्रति प्रतिबद्ध शक्तियों को संगठित एवं पुनर्बलित करने की आवश्यकता है। अंतरराष्ट्रीय सद्भावना के लिए विश्व बन्धुत्व की भावना का पल्लवन आवश्यक है।
इस भावना के विकास की आवश्यकता है कि यह पूरी दुनिया अन्ततः एक है। यदि विश्व-शान्ति एवं अंतरराष्ट्रीय सद्भावना खण्डित होती है तो अशांति की ज्वाला पूरे विश्व को भस्मीभूत कर देगी। शान्ति एवं सद्भावना के विकसित एवं परिपुष्ट होने पर हमारी यह धरती ही स्वर्ग बन जाएगी।
इस प्रकार भविष्य का धर्म पर विचार करते समय हमें समग्र दृष्टि से पूरी दुनिया को ध्यान में रखना होगा। आधुनिक प्रजातंत्र एवं लोकतंत्र के जीवन मूल्यों के अनुरूप संसार के प्रत्येक चेतन प्राणी की स्वतंत्रता तथा प्राणीमात्र की समता का प्रतिपादन करना होगा। अस्तित्व की दृष्टि से प्रत्येक चेतन प्राणी स्वतंत्र है। स्वरूप की दृष्टि से प्रत्येक प्राणी आत्मतुल्य है।
भविष्य के धर्म एवं दर्शन पर विचार करते हुए मानव-मात्र के लिए समान मानवीय मूल्यों की स्थापना करनी होगी, वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुरूप आध्यात्मिक चिन्तन प्रस्तुत करना होगा, अहिंसा आधारित जीवन यापन की व्याख्या करनी होगी, आर्थिक वैमस्य को दूर करने तथा कामनाओं पर स्वतः नियंत्रण करने की व्यवस्था स्थापित करनी होगी, पूर्वाग्रह रहित, व्यापक, उदार एवं संसार के प्रत्येक चेतन प्राणी की सुख-शान्ति की दृष्टि से विचार करने की दृष्टि प्रदान करनी होगी।
भविष्य के धर्म एवं दर्शन का स्वरूप ऐसा हो जो संसार के प्रत्येक व्यक्ति को अपने ही बल पर उच्चतम विकास कर सकने की आस्थावादी प्रेरणा प्रदान कर सके। देवता बाहर नहीं है, हमारी अन्तश्चेतना में है। अपनी अन्तश्चेतना की दिव्य ज्योति को प्रखर करने की आवश्यकता है। आज के युग ने मशीनी सभ्यता के चरम विकास से सम्भावित विनाश के जिस राक्षस को उत्पन्न कर लिया है वह किसी यंत्र से नहीं अपितु 'अहिंसा-मन्त्र' से ही नष्ट हो सकता है
Credit - प्रो. महावीर सरन जैन
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