शिप्रा की कहानी, जिसने अपनी माँ को दुख उबरने की आंतरिक शक्ति के बारे में बताया।
शिप्रा अपने दफ्तर में काम कर रही थी कि उसके घर से फोन आया और तुरंत घर लौटने को कहा गया। घर लौटने पर शिप्रा को पता चला की उसके पिता का एक कार हादसे में देहांत हो गया।
हालांकि शिप्रा और उसकी माँ दोनों नौकरी कर रही थी और उसके पिताजी ने पहले से जोड़कर रखा था कि परिवार को आर्थिक संकट नहीं था। दो साल बीत गए, लेकिन शिप्रा की माँ अब तक पति के जाने का सदमा भुला नहीं पाई थी। शिप्रा ने माँ की ढाढस बँधाने की खूब कोशिस की, फिर भी घर में उदासी का माहौल बना रहता था।
एक दिन शिप्रा सुबह से किसी काम मैं लगी हुई थी। उसकी माँ काफी देर से उसे कमरे में बुला रही थी, पर शिप्रा जा नहीं रही थी। बहार निकालकर उन्होंने देखा की शिप्रा ने घर के छज्जे पर कई मोमबत्तिया इकठ्ठा कर रखी हैं। वह धीरे से मोमबत्ती जलती थी, फिर उसकी लौ को हाथ से छुपा लेती थी, जिससे की वह हवा से बुझ न जाये।
फिर वह धीरे से उसे घर के सबसे अंदर वाले कमरे में ले जाने की कोशिस करती थी। लेकिन हवा का एक झोकां आता था और लौ बुझ जाती थी।शिप्रा फिर वापस छज्जे पर जाती थी। शिप्रा ऐसा लगभग पिछले दो घंटे से कर रही थी। माँ बोली, यह तुम क्या कर रही हो? शिप्रा बोली , माँ, मैं अंदर वाले कमरे को रोशन करना चाहती हूँ। लेकिन कुछ भी करो यह मोमबत्ती वहाँ पहुचने से पहले ही बुझ जाती है।
माँ बोली, तो तुम अंदर के कमरे में जाकर मोमबत्ती क्योँ नहीं जलाती? वहाँ हवा भी नहीं होगी और मोमबत्ती आराम से जल जायेगी। शिप्रा बोली, बस यहि तो मैं आपको समझाना चाहती हूं माँ। जिस रोशनी को आप बहार ढूढ़ने की कोशिस कर रही हैं, वह बाहर से नहीं, आपके अंदर से ही जल सकती है।
कोशिस तो कीजिए।
कहानी का सार - दुख से पार पाने की शक्ति आपके अंदर ही है।
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धन्यवाद् जय हिंद
@iamindian