मानव जीवन मे सुखी रहने के लिए स्वामी रामसुखदासजी महाराज ने बताया कि, इंसान जितना अधिक सांसारिक पदार्थो का लालच करेगा उतना ही दुखी होगा।
इंसान यदि ये धारणा बना ले कि मैं इस संसार मे मेहमान हूँ और यहां कुछ दिन रहने के लिए आया हुआ हूं। यहां रहते हुए कुछ इस प्रकार के कर्म करूँ कि वापिस जब ईश्वर के पास चला जाऊ तो संसार मेरे कर्मो के कारण याद करे और ईश्वर मुझे अपनी साधना के कारण आवागमन से मुक्ति दे दे।
इसी धारणा से मानव सदा सुखी रहकर अपने जीवन को सुखमय व्यतीत कर सकता हैं।
हमारा ध्यान ईश्वर से हटकर इस बात पर चला जाता हैं, कि लोग क्या कहेंगे अथवा उसके पास इतने संसाधन, धन, वैभव आदि हैं, तो मेरे पास उससे ज्यादा होने चाहिए।
यही हमारे दुखो का मूल कारण हैं।
सांसारिक भौतिक पदार्थ क्षणिक सुख दे सकते हैं, पर उनकी प्राप्ति के लिए बहुत दुख देखने पड़ते हैं। सच्चा सुख सेवा में हैं, भक्ति में हैं, ज्ञान प्राप्ति में हैं, सद आचरण में हैं।
मोह फ़ांस, चाहे भौतिक पदार्थो की हो या रिश्तों के बंधन की, हमेशा दुःखदायी ही होती हैं। मोह ओर लालसा सिर्फ ईश्वर प्राप्ति की हो तो ही आनन्ददायी हो सकती हैं।
ॐ शांति
इस विचारधारा पर आपके विचार सादर आमंत्रित हैं।
आपका~indianculture1
आपने बहुत अच्छी बात कही कि "इंसान जितना अधिक सांसारिक पदार्थो का लालच करेगा उतना ही दुखी होगा।"
बहुत अच्छी पोस्ट है आपकी।
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धन्यवाद himanshu, ये सारी विचारधाराएं हमारे सनातनी ऋषि मुनियों की हैं, जो हमे सद्कर्म करने के लिए प्रेरित करती हैं।
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