It seems like sitting in the mind of the children today has become entrenched in the entire society. Where the basis of the system should be that there is a complete reversal of the 'every person is honest unless he is proved to be dishonest'. Today's social system has become such that 'every person is dishonest unless he is proven to be honest'. It is the burden on us to prove ourselves to you. If no work of daily life goes through without any process, then we start to doubt that there is something wrong. Maybe there is something missing from me, I feel like I have not done it in the way.
By the time of childhood, what has happened to the person till date has filled the person's mind with guilt. To reduce the crime rate, to be the least inferior Because of this sentiment, I always try to be like someone else and I try to keep it open and never live openly. Where have you lost the transparency of faces?
बच्चों के मन में बैठी यही बात लगता है आज पूरे समाज में व्याप्त हो गई है। जहां व्यवस्था का आधार यह होना चाहिए कि ' प्रत्येक व्यक्ति ईमानदार है जब तक कि वह बेईमान सिद्ध न हो जाएँ ' वहाँ हो इसका बिलकुल उलट रहा है। आज की समाज-व्यवस्था ऐसी हो गई है कि ' प्रत्येक व्यक्ति बेईमान है जब तक कि वो ईमानदार सिद्ध न हो जाएँ'। पग-पग पर हम पर अपने आपको सिद्ध करने का बोझ है। दैनिक जीवन का कोई काम यदि बिना किसी प्रक्रिया से गुजरे सम्मानपूर्वक हो जाएँ तो हमें ही शक होने लगता है कि जरुर कुछ गड़बड़ है। शायद मुझसे ही कहीं कोई कमी रह गई है मुझे लग रहा है पर काम ढंग से हुआ नहीं है।
बचपन से लगाकर आज तक व्यक्ति के साथ यह जो कुछ भी हुआ उसने व्यक्ति के मन को अपराध-बोझ से भर दिया है। अपराध-बोझ कम होने का, सबसे हीन होने का। इसी भावना के चलते हम हमेशा ही किसी और की तरह होने और दिखने की कोशिश मैं लगे रहते है, कभी खुलकर नहीं जी पाते। चेहरों की पारदर्शिता तो जाने न कहाँ खो गई है?
YOU ARE JUST U . . . . . A BLOG ( PART-1 ) link is following :-
https://steemit.com/blog/@jainlove/you-are-just-u-a-blog-part-1
Over time all of us have started to believe that every child has some special qualities, but it is necessary only to find, to cut it. Regardless of this, we do not hesitate to understand and understand about ourselves. We are engaged in the war to make ourselves like ourselves and to make ours like us. He is himself a blood-blooded person, he is also made to whom we love.
If there is a return to peace and happiness in life, then this war has to be stopped. Understand this and understand that we all are 'good', capable of love for each other Acceptance of each other must be accepted with their specifications. Our understanding of this will give us the plain living ground. Today, I can not stop repeating the line of my favorite line that 'we all are the independent physical manifestation of God'. The confession of being unique to ourselves and our loved ones will free us from guerrillas.
समय के साथ हम सब यह तो मानने लगे है कि हर बच्चे में कोई न कोई एक विशेष गुण होता है बस जरुरत होती है उसे ढूंढ़ने की, तराशने की। बावजूद इसके न जाने क्यों यही बात हम अपने बारे में समझने और मानने से झिझकते है। हम स्वयं दूसरे के जैसा और हमारे अपनों को हमारे जैसा बनाने के युद्ध में लगे है। स्वयं तो लहू-लूहान है ही उन्हें भी किए बठे है जिनसे हम प्रेम करते है।
जीवन में शांति और आनंद लौटाने है तो इस युद्ध को रोकना होगा। यह समझना और मानना होगा कि हम सब 'अच्छे' है, एक-दुसरे के प्रेम के काबिल। एक-दूसरे की पूर्णता को उनकी विशिष्टताओं के साथ स्वीकार करना होगा। हमारी यही समझ हमें खुलकर जीने का मैदान देगी। आज मैं फिर अपनी पसंदीदा पंक्ति की पुनरावृति को नहीं रोक पा रहा हूँ कि ' हम सब ईश्वर की स्वतंत्र भौतिक अभिव्यक्ति है'। अपनी और अपनों के अद्वितीय होने की स्वीकारोक्ति ही हमें अपराध-बोध की बेड़ियों से मुक्त कराएगी।
@jainlove
Regards :- Lovely Jain