जीने के लिए कितनी संपत्ति चाहिए? बहुत थोड़ी। इतने में जीवन तो चल जाता है। बाकी तो इच्छाओं का बोझ है, जो मरते दम तक कभी कम या खत्म नहीं होता।
सब लोगों का जीवन स्तर एक समान नहीं होता। किसी के खर्चे कम होते हैं, किसी के अधिक। किसी के परिवार में सदस्य कम होते हैं, किसी के अधिक। कोई सामान्य वस्तुओं से भी अपना जीवन यापन कर लेता है, किसी को बड़े ऊंचे शौक होते हैं। वह ऊंची ऊंची महंगी चीजें खरीदता है, और लग्जरी जीवन जीता है। इस प्रकार से सब की स्थिति अलग अलग है।
फिर भी हम सब रूप रंग आकृति से मनुष्य कहलाते हैं। यदि हम सब मनुष्य हैं, तो 1 गुण तो सभी में होना चाहिए, जिसका नाम है "मनुष्यता"। यह हम सब को एक कोटि अर्थात कैटेगरी में खड़ा करती है।
मनुष्यता के बहुत सारे लक्षण हैं, जिनमें से एक मुख्य लक्षण है, दूसरों पर दया करना। जैसे हम अपना दुख दूर करना चाहते हैं, और अपने दुख दूर करने का प्रयत्न करते हैं। ऐसे ही दूसरों का भी दुख दूर करने की इच्छा रखें और उसके लिए प्रयत्न भी करें। जैसे हम अपने लिए सुख चाहते हैं, और उसके लिए प्रयत्न करते हैं। इसी प्रकार से दूसरों के लिए भी सुख चाहें, और उनके सुख के लिए प्रयत्न भी करें। इसका नाम दया है। यदि किसी में ऐसा गुण है, तो मानना चाहिए कि वह मनुष्य है। क्योंकि यही मनुष्यता का सबसे बड़ा लक्षण है।
मान लीजिए, बहुत से लोगों के पास संपत्ति बहुत अधिक है, उनकी आवश्यकता से भी कई गुना फालतू है। जबकि वे उसका कोई उपयोग नहीं करेंगे। सिर्फ जमा किए रखेंगे, अपने संतोष के लिए, या दूसरों के दिखावे के लिए, या और भी किसी कारण से। उस जमा संपत्ति का वे लोग न तो अपने लिए प्रयोग करते हैं, और न ही दूसरों के लिए। वह संपत्ति व्यर्थ पड़ी रहती है। यदि उस फालतू संपत्ति का धनवान लोग दूसरों की उन्नति के लिए प्रयोग कर दें, तो लाखों करोड़ों लोगों को लाभ हो सकता है। उनके जीवन की रक्षा हो सकती है। उनकी शिक्षा और चिकित्सा की व्यवस्था हो सकती है। लोगों के रहने के लिए मकानों की व्यवस्था हो सकती है। उन धनवानों के सहयोग से लाखों लोगों की वृद्धावस्था आदि सुखमय हो सकती है।
परंतु देखने को तो यही मिलता है, जिसमें ऐसी दया और मनुष्यता की भावना होती है, उसके पास धन नहीं होता। क्योंकि उसके पूर्व जन्म के कर्म कुछ कमजोर थे। उसे जन्म ही निर्धन परिवार में मिला। अतः उसकी इच्छा होते हुए भी वह दान सहयोग दया आदि नहीं कर पाता। जिसके पास धन फालतू है, वह जमा किए रखता है। उसमें दया नहीं है, कि वह अपने फालतू धन से देश दुनियां का उपकार करे। प्राणियों की रक्षा करे। कुछ लोग अपवाद के रूप में होते हैं, जो दयालु होते हैं। जो ऐसे दया दान आदि कर्म करते हैं। ऐसे लोग धन्यवाद के पात्र हैं।
हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि, वह अन्य धनवान लोगों को भी सद्बुद्धि दे, ईश्वर तो सदा सबको सद्बुद्धि देता ही है। वे धनवान लोग ईश्वर से सद्बुद्धि प्राप्त करें, जिससे कि वे ईश्वर की भक्ति उपासना करके कुछ दया भाव सीखें, और अपनी फालतू संपत्ति से दान दया आदि करके मनुष्य तथा अन्य प्राणियों के जीवन की रक्षा करें।
हां, दान दया आदि करने से पहले उचित पात्र की परीक्षा अवश्य करें। आलसी निकम्मे कामचोर लोगों को मुफ्त में न खिलाएं। उनसे काम करवाएं, फिर खिलाएं। पुरुषार्थी परन्तु कमजोर लोगों की सहायता अवश्य करें। और जो किसी कारण से विकलांग रोगी वृद्ध आदि जन हों, उनकी सब प्रकार से सहायता सेवा करें। तो यह पृथ्वी स्वर्ग बन सकती है, तथा मानवता की रक्षा हो सकती है।
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