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in onam •  6 years ago 

FESTIVAL

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@Onam

ओणम केरल का राज्योत्सव है। केरल में अनेक उत्सव मनाये जाते हैं जो सामाजिक मेल-मिलाप और आदान-प्रदान की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। केरलीय जीवन की छवि यहाँ मनाये जानेवाले उत्सवों में दिखाई देती है।

ओणम का अर्थ
वास्तव में ओणम का अर्थ है "श्रावण"। श्रावण के महीने में मौसम बहुत खुशगवार हो जाता है, चारों तरफ़ हरियाली छा जाती है, रंग–बिरंगे फूलों की सुगन्ध से सारा चमन महक उठता है। केरल में चाय, अदरक, इलायची, काली मिर्च तथा धान की फ़सल पक कर तैयार हो जाती है। नारियल और ताड़ के वृक्षों से छाए हुए जल से भरे तालाब बहुत सुन्दर लगते हैं। लोगों में नयी–नयी आशाएँ और नयी–नयी उमंगें भर जाती हैं। लोग खुशी में भरकर श्रावण देवता और फूलों की देवी का पूजन करते हैं।

केरलीय जीवन की छवि यहाँ मनाये जानेवाले उत्सवों में दिखाई देती है। केरल में अनेक उत्सव मनाये जाते हैं जो सामाजिक मेल-मिलाप और आदान-प्रदान की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। केरलीय कलाओं का विकास यहाँ मनाये जानेवाले उत्सवों पर आधारित है। इन उत्सवों में कई का संबन्ध देवालयों से है, अर्थात् ये धर्माश्रित हैं तो अन्य कई उत्सव धर्मनिरपेक्ष हैं। ओणम केरल का राज्योत्सव है।
Onam Festival 2018 will begin on : Wednesday, 15 August
Onam Festival 2018 ends on : Monday, 27 August
क्यों मनाया जाता है ओणम?
ओणम पर्व की मान्यता है कि राजा बलि केरल के राजा थे. उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी व संपन्न थी. इसी दौरान भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर आए और तीन पग में उनका पूरा राज्य लेकर उनका उद्धार कर दिया. माना जाता है कि वे साल में एक बार अपनी प्रजा को देखने के लिए आते हैं. तब से केरल में हर साल राजा बलि के स्वागत में ओणम का पर्व मनाया जाता है.
ओणम पर्व घरों की आकर्षक साज-सज्जा के साथ ही तरह-तरह के पकवान बनाने का भी रिवाज है.
इसके साथ ही ओणम नई फसल के आने की खुशी में भी मनाया जाता है.
हर घर के सामने फूलों की रंगोली सजाने और दीप जलाने की भी परंपरा हैं.
इस मौके पर केरल में बोट महोत्‍सव का आयोजन भी किया जाता है. हर साल इस बोट रेस को देखने के लिए लाखों की संख्‍या में पर्यटक केरल पहुंचते हैं.
इस अवसर पर मलयाली समाज के लोगों ने एक-दूसरे को गले मिलकर शुभकामनाएं देते हैं. साथ ही परिवार के लोग और रिश्तेदार इस परंपरा को साथ मिलकर मनाते हैं.
ओणम से पहले इस त्‍योहार के आगमन की तैयारियां शुरू हो जाती हैं और आज के दिन हाथियों का सजाकर उनकी रैली निकाली जाती है.
ऐसे मनाया जाता है त्यौहार
ओणम के नजदीक आते ही महिलाएं ढ़ेर सारी तैयारियां करना शुरू कर देती हैं. इस प्रसिद्ध त्यौहार के लिए कई तरह के पकवान भी बनाए जाते हैं. लोग इसके लिए ओणम लंच का भी आयोजन करते हैं और अपने करीबी दोस्तों और जानकारों को खाने पर बुलाते हैं. इन स्वादिष्ट पकवानों में स्पेशल पूजा वाली खीर (आडाप्रधावन) के साथ खिचड़ी करेला, खिचड़ी बीटरुट, अवियल, पुलिस्सेरी, दाल, साम्भर, दही, घी, आमदूध और चावल का खीर, केला, केला चिप्स, पापड़ सहित लगभग 27 तरह के दक्षिण भारतीय पकवान शामिल होते हैं. इन सभी पकवानों को एक ही केले के पत्ते पर रखकर खाया जाता है. इस दौरान कई तरह की खेल-कूद प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है. जिनमें लोकनृत्य, शेरनृत्य, कुचीपु़ड़ी, ओडीसी, कथक नृत्य और नौका प्रतियोगिताएं प्रमुख हैं.

इस दिन सुन्दर पुष्पों से घरों को सजाया जाता है, एवं इन दिनों घरों में फूलों की रंगोली बनाई जाती है। महिलायें और किशोरियाँ इस दिन नाचने गाने में मस्त रहती हैं और पुरूष तैरने और नौका-दौड़ में सम्मिलित होते हैं।
केरल में दस दिवसीय ओणम महोत्सव
एथम/अथम (प्रथम दिन): इस दिन, लोग अपने दैनिक क्रिया-कलापों की तरह सबेरे जल्दी उठकर मंदिर में ईश्वर की पूजा करते हैं। सुबह के नाश्ते में लोग केला और फ्राइ किए हुए पापड़ लेते हैं। ज़्यादातर लोग पूरे ओणम इसी ब्रेकफ़ास्ट को लेते हैं, उसके बाद लोग ओणम पुष्प कालीन (पूकलम) बनाते हैं।
चिथिरा (दूसरा दिन): दूसरा दिन भी पूजा की शुरूआत के साथ शुरू होता है। उसके बाद महिलाओं द्वारा पुष्प कालीन में नए पुष्प जोड़े जाते हैं और पुरुष उन फूलों को लेकर आते हैं।
चोधी (तीसरा दिन): पर्व का तीसरा दिन ख़ास है, क्योंकि थिरुवोणम को बेहतर तरीक़े से मनाने के लिए लोग इस दिन ख़रीदारी करते हैं।
विसाकम (चौथा दिन): चौथे दिन कई जगह फूलों का कालीन बनाने की प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। महिलाएँ इस दिन ओणम के अंतिम दिन के लिए अचार, आलू की चिप्स आदि तैयार करती हैं।
अनिज़ाम (पाँचवां दिन): इस दिन का केन्द्र बिन्दु नौका दौड़ प्रतियोगिता होती है जिसे वल्लमकली भी कहते हैं।
थ्रिकेता (छटा दिन): इस दिन कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और सभी उम्र के लोग इसमें भाग लेते हैं। साथ ही लोग इस दिन अपने क़रीबियों को बधाई भी देने जाते हैं।
मूलम (सातवां दिन): लोगों का उत्साह इस दिन अपने चर्म पर होता है। बाज़ार भी विभिन्न खाद्य पदार्थों के साथ सज जाते हैं। लोग आसपास घूमने के साथ-साथ व्यंजनों की कई किस्मों का स्वाद चखते हैं और महिलाएँ अपने घरों को सजाने के लिए कई चीजें ख़रीदती हैं।
पूरादम (आठवां दिन): इस दिन लोग मिट्टी के पिरामिड के आकार में मूर्तियाँ बनाते हैं। वे उन्हें ‘माँ’ कहते हैं और उनपर पुष्प चढ़ाते हैं।
उथिरादम (नौवां दिन): यह दिन प्रथम ओणम के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन लोगों के लिए बेहद ही हर्षोल्लास भरा होता है, क्योंकि इस दिन लोगों को राजा महाबलि का इंतज़ार रहता है। सारी तैयारी पूरी कर ली जाती हैं और महिलाएँ विशाल पुष्प कालीन तैयार करती हैं।
थिरुवोणम (दसवाँ दिन): इस दिन जैसे ही राजा का आगमन होता है लोग एक-दूसरे को पर्व की बधाई देने लगते हैं। बेहद ख़ूबसूरत पुष्प कालीन इस दिन बनाई जाती है। ओणम के पकवानों से थालियों को सजाया जाता है और साध्या को तैयार किया जाता है। कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है और जमकर आतिशबाज़ी की जाती है। इस दिन को दूसरा ओणम भी कहा जाता है।

ओणम फ़ेस्टिवल थिरुवोणम के बाद भी दो दिनों तक और मनाया जाता है अर्थात यह कुल 12 दिनों तक मनाया जाता है, हालाँकि ओणम में पहले के 10 दिन ही मुख्य होते हैं।

अविट्टम (ग्यारवां दिन): यह दिन तीसरे ओणम के नाम से भी जाना जाता है। लोग अपने राजा को वापस भेजने की तैयारी करते हैं। कुछ लोग रीति-रिवाज से ओनथाप्पन मूर्ति को नदी अथवा सागर में प्रवाह करते हैं, जिसे वे अपने पुष्प कालीन के बीच इन पूरे दस दिनों तक रखते हैं। इसके बाद पुष्प कालीन को हटाकर साफ़-सफाई की जाती है, हालाँकि कुछ लोग इसे थिरुवोणम के बाद भी 28 दिनों तक अपने पास रखते हैं। इस दिन पुलीकली नृत्य भी किया जाता है।
चथ्यम (बाहरवां दिन): इस दिन पूरे समारोह को एक विशाल नृत्य कार्यक्रम के साथ समाप्त किया जाता है। केरल के लोग ओणम के त्यौहार को नाचते – गाते मानते है। इस दिन पूरे राज्य में शेर नृत्य, कुचीपुड़ी, गजनृत्य, कुमट्टी काली, पुलीकली तथा कथकली जैसे लोकनृत्य किये जाते हैं।
ओणम उत्सव के पकवान
थिरुओनम या तिरुओणम
ओणम त्यौहार का आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन केरल राज्य के सभी घरों में पारम्परिक पकवान बनायें जाते है। चावल के आटे में विभिन्न प्रकार की सब्जियों को मिलाकर अवियल बनाया जाता है, केले का हलवा, नारियल की चटनी बनाई जाती है। इसी प्रकार पूरे 64 प्रकार के पकवान बनाएं जाते है। जिन्हें ओनसद्या कहा जाता है। इन सभी पकवानों को बनाने के बाद इन्हें केले के पत्तों पर परोसा जाता हैं. ओणम केरल का एक प्रमुख त्योहार है। ओणम केरल का एक राष्ट्रीय पर्व भी है। ओणम का उत्सव सितम्बर में राजा महाबली के स्वागत में प्रति वर्ष आयोजित किया जाता है जो दस दिनों तक चलता है। उत्सव त्रिक्काकरा (कोच्ची के पास) केरल के एक मात्र वामन मंदिर से प्रारंभ होता है।

ओणम में प्रत्येक घर के आँगन में फूलों की पंखुड़ियों से सुन्दर सुन्दर रंगोलिया (पूकलम) डाली जाती हैं। युवतियां उन रंगोलियों के चारों तरफ वृत्त बनाकर उल्लास पूर्वक नृत्य (तिरुवाथिरा कलि) करती हैं। इस पूकलम का प्रारंभिक स्वरुप पहले (अथम के दिन) तो छोटा होता है परन्तु हर रोज इसमें एक और वृत्त फूलों का बढ़ा दिया जाता है। इस तरह बढ़ते बढ़ते दसवें दिन (तिरुवोनम) यह पूकलम वृहत आकार धारण कर लेता है। इस पूकलम के बीच त्रिक्काकरप्पन (वामन अवतार में विष्णु), राजा महाबली तथा उसके अंग रक्षकों की प्रतिष्ठा होती है जो कच्ची मिटटी से बनायीं जाती है। ओणम मैं नोका दौड जैसे खेलों का आयोजन भी होता है। ओणम एक सम्पूर्णता से भरा हुआ त्योहार है जो सभी के घरों को ख़ुशहाली से भर देता है।
तैयारियाँ
ओणम के त्योहार से दस दिन पहले बच्चे प्रतिदिन बाग़ों में, जंगलों में तथा फुलवारियों में फूल चुनने जाते हैं और फूलों की गठिरयाँ बाँध–बाँधकर अपने घर लाते हैं। घर का एक कमरा फूल घर बनाया जाता है। फूलों की गठिरयाँ उसमें रखते हैं। उस कमरे के बाहर लीप–पोत कर एक चौंक तैयार किया जाता है और उसके चारों तरफ़ गोलाई में फूल सजाए जाते हैं। दरवाज़ों, खिड़कियों और सब कमरों को फूलों की मालाओं से सजाया जाता है। जैसे - जैसे ओणम का मुख्य त्योहार निकट आता है, वैसे - वैसे फूलों की सजावट बढ़ती जाती है।
मूर्ति की स्थापना
इस तरह से आठ दिन तक फूलों की सजावट का कार्यक्रम चलता है। नौवें दिन हर एक घर में विष्णु भगवान की मूर्ति स्थापित की जाती है। औरतें विष्णु भगवान की पूजा के गीत गाती हैं और ताली बजाकर गोलाई में नाचती हैं। इस नाच को 'थप्पतिकलि' कहते हैं। बच्चे वामन अवतार के पूजन के गीत गाते हैं। इन गीतों को 'ओणम लप्ण' कहते हैं। रात को हर घर में गणेश जी तथा श्रावण देव की मूर्ति स्थापित की जाती है और उनके सामने मंगलदीप जलाए जाते हैं। इस दिन एक विशेष प्रकार का पकवान बनाया जाता है, जिसे 'पूवड़' कहते हैं।
मुख्य त्योहार
दसवें दिन ओणम का मुख्य त्योहार मनाया जाता है। जो कि त्रयोदशी के दिन होता है। इस दिन घर के सभी सदस्य सुबह सवेरे उठ कर स्नान कर लेते हैं और घर का बुज़ुर्ग सबको नये–नये कपड़े पहनने के लिए देता है। लड़कियाँ एक विशेष प्रकार का पकवान, जिसे 'वाल्लसन' कहते हैं, बना कर श्रावण देवता, गणेश जी, विष्णु भगवान, वामन भगवान तथा फूलों की देवी पर चढ़ाती हैं और लड़के तीर चलाकर उस चढ़ाये हुए पकवान को वापस लौटा कर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
तिरू ओणम
तिरू ओणम के दिन प्रातः नाश्ते में भूने हुए या भाप में पकाए हुए केले खाए जाते हैं। इस नाश्ते को 'नेन्द्रम' कहते हैं। यह एक ख़ास केले से तैयार होता है, जिसे 'नेन्द्रम काय' कहते हैं। यह केले केवल केरल में ही पैदा होते हैं। उस दिन का खाना चावल, दाल, पापड़ और केलों से बनाया जाता है और बहुत स्वादिष्ट भोजन बनाए जाते हैं और हर एक घर में पूजापाठ तथा धार्मिक कार्यक्रम होते हैं।
प्राचीन परम्परायें
यह हस्त नक्षत्र से शुरू होकर श्रवण नक्षत्र तक का दस दिवसीय त्योहार है। हर घर के आँगन में महाबलि की मिट्टी की त्रिकोणात्मक मूर्ति, जिस को 'तृक्काकारकरै अप्पन' कहते हैं, बनी रहती है। इसके चारों ओर विविध रंगों के फूलों के वृत्त चित्र बनाए जाते हैं। प्रथम दिन जितने वृत्त रचे जाते हैं, उसके दोगुने–तिगुने तथा अन्त में दसवें दिन दस गुने तक वृत्त रचे जाते हैं। केरल के लोगों के लिए यह उत्सव बंसतोत्सव से कम नहीं है। यह उत्सव केरल में मधुमास लेकर आता है। यह दिन सजने–धजने के साथ–साथ दुःख–दर्द भूलकर खुशियाँ मनाने का होता है। ऐसी मान्यता है कि तिरुवोणम के तीसरे दिन महाबलि पाताल लोक लौट जाते हैं। जितनी भी कलाकृतियाँ बनाई जाती हैं, वे महाबलि के चले के बाद ही हटाई जाती हैं। यह त्योहार केरलवासियों के साथ पुरानी परम्परा के रूप में जुड़ा है। ओणम वास्तविक रूप में फ़सल काटने का त्योहार है, पर अब इसकी व्यापक मान्यता है।

पौराणिक आख्यान
कहा जाता है कि जब परशुरामजी ने सारी पृथ्वी को क्षत्रियों से जीत कर ब्राह्मणों को दान कर दी थी, तब उनके पास रहने के लिए कोई भी स्थान नहीं रहा, तब उन्होंने सह्याद्रि पर्वत की गुफ़ा में बैठ कर जल देवता वरुण की तपस्या की। वरुण देवता ने तपस्या से खुश होकर परशुराम जी को दर्शन दिए और कहा कि तुम अपना फरसा समुद्र में फैंको। जहाँ तक तुम्हारा फरसा समुद्र में जाकर गिरेगा, वहीं तक समुद्र का जल सूखकर पृथ्वी बन जाएगी। वह सब पृथ्वी तुम्हारी ही होगी और उसका नाम परशु क्षेत्र होगा। परशुराम जी ने वैसा ही किया और जो भूमि उनको समुद्र में मिली, उसी को वर्तमान को 'केरल या मलयालम' कहते हैं। परशुराम जी ने समुद्र से भूमि प्राप्त करके वहाँ पर एक विष्णु भगवान का मन्दिर बनवाया था। वही मन्दिर अब भी 'तिरूक्ककर अप्पण' के नाम से प्रसिद्ध है और जिस दिन परशुराम जी ने मन्दिर में मूर्ति स्थापित की थी, उस दिन श्रावण शुक्ल की त्रियोदशी थी। इसलिए उस दिन 'ओणम' का त्योहार मनाया जाता है। हर एक घर में विष्णु भगवान की मूर्ति स्थापित करके उसकी पूजा की जाती है।
ओणम के जश्न में केरल, राज्य की संस्कृति की अनोखी झलक है त्यौहार
ओणम भारत के समुद्री किनारे पर बसे केरल राज्य का एक प्रमुख त्योहार है। ओणम का त्योहार सितम्बर में राजा महाबली के स्वागत में हर साल यह त्यौहार आयोजित किया जाता है जो दस दिनों तक चलता है। इस दौरान घरों को फूलों से सजाया जाता है और तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। 10 दिन तक चलने वाले ओणम त्‍योहार का मुख्‍य आकर्षण घर की सजावट और खान-पान ही है।
ओणम हर साल श्रावण शुक्ल की त्रयोदशी को मनाया जाता है जिसमें लोग आपस में मिल-जुलकर खुशियां मनाते हैं। केरल में इन दिनों फसल पककर तैयार हो जाती है और लोग फसल की अच्छी उपज की खुशी में ये त्योहार मनाते है।
खूबसूरत पोक्कलम करता है आकर्षित
मलयाली समुदाय की महिलाएं ओणम के दौरान फूल की पंखुड़ियों से खूबसूरत पोक्कलम (फूलों की रंगोली) बनाती हैं. इसके लिए केरल की महिलाओं का उत्साह देखते ही बनता है. खूबसूरत फूलों की रंगोली लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी रहती हैं. इसके बाद महिलाएं और बाकी के लोग यहां के लोक गीतों पर नृत्य भी करते हैं.
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