Ek Gazal

in poetry •  7 years ago 

एक और ताज़ा ग़ज़ल अहबाब की नज़्र....IT IS DEDICATED TO MY LOVING BROTHER

गरीबी में दिन कैसे आने लगे है
सभी मेरी कीमत लगाने लगे हैं

मेरे हाथ में हाथ जिनका था कल तक
वही मुझ पे ऊँगली उठाने लगे हैं

मज़ा दे रही हैं ये उनकी अदाए
मैं रूठी हु मुझको मनाने लगे हैं

हवाओ से कह दो कि रस्ता बदल दे
दिए अपने घर हम जलाने लगे

रुकी जा रही हैं हमारी ये साँसे
तुझे यार अब हम भुलाने लगे हैं

मेरी जान दीदार अपना करा दो
जुदाई के लम्हे सताने लगे हैं !!

Bhai Shab.jpg

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