एक और ताज़ा ग़ज़ल अहबाब की नज़्र....IT IS DEDICATED TO MY LOVING BROTHER
गरीबी में दिन कैसे आने लगे है
सभी मेरी कीमत लगाने लगे हैं
मेरे हाथ में हाथ जिनका था कल तक
वही मुझ पे ऊँगली उठाने लगे हैं
मज़ा दे रही हैं ये उनकी अदाए
मैं रूठी हु मुझको मनाने लगे हैं
हवाओ से कह दो कि रस्ता बदल दे
दिए अपने घर हम जलाने लगे
रुकी जा रही हैं हमारी ये साँसे
तुझे यार अब हम भुलाने लगे हैं
मेरी जान दीदार अपना करा दो
जुदाई के लम्हे सताने लगे हैं !!