वक़्त मुस्कुरा दिया
शिव के भोलेपन को देखकर,
और पार्वती भी।
विष्णु ने,
विष भिजवाया था शिव के लिए
और भोलेनाथ तैयार हो गए थे उसे
पी जाने के लिए।
सबको इंतज़ार था अमृत का।
वक़्त को भी।
कई दिनों से देखता रहा था वो
देवताओं को असुरों से छल करते हुए
समुन्द्र मंथन का।
देखता रहा था वो,
वासुकी की पीड़ा को
जो मंदार पर्वत से लिपट कर
समुन्दर को मथ रहा था कई दिनों से।
कई दिनों से इंतज़ार था वक़्त को भी अमृत का।
पर जब विष निकला,
अमृत से पहले
तो वक़्त डर गया।
हलाहल का रूप देख कर
लगा कि अब सफ़र ख़त्म होने को है।
क्या ख़बर थी कि बात ब्रह्मा से
से होती हुई विष्णु तक पहुंचेगी ?
और फिर शिव तक, जो
तैयार हो जाएंगे विष पी जाने को।
शिव एक लम्हे के लिए देखते रहे हलाहल को
जो सर्वनाश पर तुला था सृष्टि के,
जो उनके हिस्से आया था इसलिए कि देवताओं को अमृत्व चाहिए था।
शिव एक लम्हे के लिए देखते रहे हलाहल को
और फिर उसे पी गए।
पर पार्वती की बैचनी ने
विष को शिव के भीतर नहीं जाने दिया।
रोक दिया कंठ में।
और वक़्त देखता रहा
रंग बदलते हुए
शिव के कंठ का
और देवताओं का
जो अमृत पीने की उम्मीद में लाये थे विष,
शिव को पिलाने के लिए।