ग़ज़ल
नजरों के तीर दिल पे चलाया न कीजिये
ये जाल रोज रोज बिछाया न कीजिये
रानाइयां ये आपकी' कितना सँभालूं' खुद
करके इशारा' बाम पे आया न कीजिये
कितने लुटे हैं इश्क में बर्बाद हो गए
इस फ़लसफ़ा को यार भुलाया न कीजिये
बैठे हैं मुठ्ठियों में लिये लोग तो नमक
यूँ जख़्म भी सभी को दिखाया न कीजिये
गुरबत में साथ देते रहे दोस्त जो कभी
उनको कभी भी आप भुलाया न कीजिये
आँखों पे होंठ पे या लिखूँ जुल्फों पे प्रखर
उलझा हूँ देख और सताया न कीजिये
Coooool
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Thanks
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