Ghazal

in prameshtyagi •  7 years ago 

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गज़ल

मैं कहाँ सारा जमाना चाहता हूँ
सिर्फ सबका प्यार पाना चाहता हूँ

आइने सा दिल मेरा बेशक़ है लेकिन
संगदिल से दिल लगाना चाहता हूँ

बस यही ख़्वाहिश है सूरज के जहाँ में
मोम का इक़ घर बनाना चाहता हूँ

ख़त्म करके अब पुरानी दास्ताँ को
इक़ नया कोई फ़साना चाहता हूँ

दौलत-ए-दुनिया मुबारक हो तुझे पर
मैं दुआओं का खज़ाना चाहता हूँ

जो बलाएं पाँव में लिपटी हैं शाबान
उनको पलकों पर बिठाना चाहता हूँ

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Waah sahab waah babut khoob

धन्यवाद