Deep introspection

in shaayri •  3 years ago 

(क्या अजीब लोग हैं ,
इन पर तो रेहम आता है |
जो कांटे बोके ,
ज़मीन से गुलाब मांगते हैं |)

मिले होंगे कभी तुम किसी न किसी से ,
जो रो रहे होंगे सामने तुम्हारे ,
पर पीछे से खुद के रोने का इंतज़ाम ज़ोर शोर से कर रहे होते हैं |
रुकने का नाम नहीं लेते वो ,
खुद को दुःख देने से दिल नहीं भरता ,
तो दूसरो की ज़िंदगी में भी कांटे बोते रहते हैं |

(क्या अजीब लोग हैं ,
इन पर तो रेहम आता है |
जो कांटे बोके ,
ज़मीन से गुलाब मांगते हैं |)

बच के निकल जाओ इन लोगो के साये से भी ,
बेहोशी में चल रहे हैं ये |
इतने मशरूफ हैं अपनी काबलियत को जलवा दिखाते दिखाते ,
अँधेरे में आपके साये का भी फांसी दे दें |
और हम सोचते रहे , खुदा का बंदा है ये ,
अंधेरों में मदद करने लिए आया है |

(क्या अजीब लोग हैं ,
इन पर तो रेहम आता है |
जो कांटे बोके ,
ज़मीन से गुलाब मांगते हैं |)

अपने अंदर भी झांकों कभी तुम,
साये को ढूंढो कभी |
मिल जाए तो किस्मत,
नहीं तो मुबारक हो , पता तो लगा तुम्हे |
शरीर बचा है , ख़ुशी का साया लापता है अंदर से |
खबर छपवा दो शहर में ,
जिसने भी चुराई हो, वापस करदे |
रात की नींदें हराम हो गयी ,
दिन का चैन भी नदारद है |

(क्या अजीब लोग हैं ,
इन पर तो रेहम आता है |
जो कांटे बोके ,
ज़मीन से गुलाब मांगते हैं |)

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