हम सरदारों का अक्सर मजाक उड़ाते हैं और यह कहते हैं कि सरदारों के 12:00 बज गए .
उनकी असली कहानी क्या है यह आज हम post के जरिए बता रहे हैं.
अफगानी हमलावर नादिर शाह ने सन् 1739 में हमला किया था। जैसे ही वह लाहौर पहुंचा लाहौर का सूबेदार जकरीया खान उसके आगे झुक गया और कीमती नजरानें पेश किये। फिर जहां से भी नादिर शाह गुजरता गया, नजराने व कीमती उपहार मिलते गये, सभी उसके आगे झुकते चले गये और दिल्ली का बादशाह मुहंमद शाह रंगीला भी ज्यादा समय ना टिक सका और नादिर शाह के आगे झुक गया। नादिर शाह ने लगभग दो महींने तक दिल्ली को जमकर लुटा और लुट के रुप में कोहेनुर हीरा, बादशाह का तख्ते ताऊस सिंहासन, बीस करोड़ नकद, सत्तर करोड़ की संपत्ति, हजारों हाथी, घोड़े तथा ऊंट सोने-चांदी व पदार्थों से लदे हुए और हजारों लड़कियां अपने साथ लेकर चल दिया।
इन लड़कियों को अफगानिस्तान के बाजारों में टके-टके के भाव बेचा जाना था। उसी वक्त गलतफहमी के कारण नादिर शाह के कुछ सिपाही मार दिये गये जिसके बाद नादिर शाह ने अपनी तलवार निकालकर कत्लेआम का आदेश दे दिया। पूरी दिल्ली में एक लाख से ज्यादा लोगों को कत्ल कर दिया गया, चारों तरफ लाशें बिछा दी गई, मुगल फौज ने हर घर-गली-मौहल्ले को जि'भर के लुटा क्योंकि रोकने वाला, विरोध करने वाला या लड़ने वाला तो कोई था ही नहीं (उस समय बहुत से परिवारों ने लड़ने की जगह अपनी जवान बेटियों को घरों में ही कत्ल कर दिया ताकि उनको मुगल सिपाहियों से बचाया जा सके)।
कत्लेआम रोकने के लिए दिल्ली के बादशाह ने अपनी लड़की का रिश्ता भी नादिर शाह के पुत्र नासीर शाह के साथ कर दिया। इसके बाद नादिर शाह ने अपनी तलवार नीचे की तथा कत्लेआम को रोका और वह लूट का सारा सामान अपनी बहुत बड़ी फौज के साथ लेकर चल दिया। उस समय चाहे सभी के हाैंसले पस्त हो गये थे, सभी का खून ठंडा पड़ गया था, लोग डर के कारण अपनी बहु-बेटियों को अपने ही सामने बाजारों में बिकने के लिए भेज रहे थे। लेकिन गुरू के शेर, गुर के सिंघ सुरमें भले ही संख्या में कम थे, जंगलों में छिपकर रहते थे, पत्ते आदि खाकर गुजारा करते थे, परंतु फिर भी सिखों के होते हुए कोई हमलावर यहां से बेटियों को कैसे ले जा सकता था।
जैसे ही नादिर शाह वापिस जाने लगा सिख अखनूर के पास नादिर शाह के उपर भूखे शेरों की तरह टूट पडे़ और उसे घेर लिया। सिंघों ने उस समय आसमान और धरती को भी हिला दिया। गुरू के बहादुर सिख पलों के अंदर ही ज्यादातर लड़कियों तथा कुछ लूट के सामान को भी अपने साथ छुड़ाकर ले गये और सिख जंगलों में वापिस चले गये। उस समय में सिख संख्या में कम होते थे इसलिये वे हिंदु बहु-बेटियों की इज्जत बचाने के लिए रात को उस समय हमला करते थे जब सारे सिपाही आराम से सो जाते थे तथा बहु-बेटियों को छुड़ाकर, उनके साथ होने वाले अत्याचार से बचाते थे और घर वापिस छोड़कर आते थे। रात के इन हमलों के कारण से सर्दी में भी रात के समय मुगलों के पसीने छूटने लगते थे और वे कहते थे कि बाहर बजने वाले हैं, सिखों के आने का समय हो गया है। उस समय सिख हिंदुओं की लड़कियों को बचाने आया करते थे, अपनी जान गंवा कर, तलवारें, गोलियां खाकर इज्जत की रक्षा करते थे।
परंतु आज हमें इस बात का समाज ने क्या इनाम दिया है, आज वो ही लोग हमारे सिख बच्चों का मजाक उड़ाते हैं और कहते हैं कि सरदार के बारह बज गये। खैर हम सिखों को इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हमारे बुजुर्गों को पानी में उबालने, सिर पर आरा चलाने,आंखें निकालने, हाथ-पैर काटने, बच्चों के दिल निकालकर मुंह में डालने, खोपड़ियां उतारने, शरीर की खाल उतारने, जिंदा गड्ढों में दबाने, चरखड़ियों पर चढाने, तलवारों के घाव आदि से जब कोई फर्क ना पड़ा तो हमें बारह बजे कहने से क्या फर्क पड़ेगा। हां अगर हमारे बुजुर्ग ना होते तो समाज पर धब्बा जरूर लगा जाता कि किसी ने भी इन बहु-बेटियों की इज्जत ना बचाई। लेकिन आज सिखों का मजाक उड़ाने पर उन सभी लड़कियों, माताओं, बहनों की आत्मा को ठेस अवश्य ही पहुंचती होगी जो उस समय रात के बारह बजने और सिखों के आने का इंतजार किया करती हाेंगी, जो उस समय सोचती होंगी कब 12 बजेगें और सिख हमें बचाएंगे। उस समय नादिर शाह हैरान था कि मेरे आगे लाहौर का सूबेदार भी झुक गया, दिल्ली का बादशाह भी झुक गया, अभी मैं दिल्ली में इतना बड़ा कत्लेआम करके आया हूं, सभी मेरे नाम से घबराते हैं, तो फिर ये लोग कौन थे जो मुझे भी लूटकर, लड़कियों को छुड़ाकर ले गये। नादिर शाह ने पूछा कि मुझे बताओ कि ये कौन हैं जिन्होंने नादिर शाह को भी लूटा है, मैं इनके घर-शहर को राख में बदल दुंगा। जकरीया खान ने जवाब दिया कि इनका नाम सिख है, मजहब खालसा है, ये पराई स्त्री को माता कहते हैं, चोरी निंदा नहीं करते, सौ-सौ किलोमीटर घोड़ों पर लगातार दौड़ते ही चले जाते हैं, ये अपने घोड़ों पर ही सो जाते हैं, सारा दिन गर्मीयों में बिना पानी तथा सर्दीयों में बिना आग के रहते हैं। आप इनके घर-शहर को राख कैसे करोगे इनके तो घर ही नहीं हैं, ये तो जंगलों में ही रहते हैं इसलिये इनको पकड़ना नामुमकिन है।
जिन लड़कियों के रखड़ी बंधवाने वाले भाई भी मुसिबत में उनका साथ छोड़ देते थे, सिख उन बहनों को रात के 12 बजने के बाद छुड़ाकर वापिस इज्जत के साथ घर छोड़कर आते थे। लेकिन आज बेशर्मी की हद हो गई है क्योंकि आज सिखों इस बहादुरी, दिलेरी व हिम्मत की कहानी को मजाक के रुप पेश किया जाता है, सिख बच्चों को 12 बज गये कहकर मजाक उड़ाया जाता है
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