नमस्कार दोस्तों,
आज मेरे दिन की शुरुआत सर्व विकार मुक्त चित्त से हुई। आज मैं रोज की तरह सुबह गुनगुना पानी पीकर और भोरक्रियाओं से मुक्त हुआ जैसा कि आप जानते हैं आज भाई दूज तो आज दिन मेरी प्यारी तीनों बहनों ने मेरा तिलक किया और मैने उनका आशीर्वाद लिया ।इसके बाद
त्रिनेत्र धारी भोले शिव शंकर जी के दर्शनों के लिए अपने गांव पठा विजयपुरा से लगभग 25 किलोमीटर मध्य प्रदेश राज्य में टीकमगढ़ जिले के अंतर्गत कुंडेश्वर धाम गया।
यह पवित्र स्थल नदी में बने कुंड और भोले शिव शंकर जी के शिवलिंग के लिए प्रसिद्ध है यहां लोगों का ऐसा मानना भी है कि प्रति वर्ष शिव लिंग की लंबाई बढ़ती रहती है जिसका मैंने वास्तविक अनुभव ही किया है क्योंकि जब मैं 8 वर्ष पहले यहां दर्शनों के लिए आया हुआ था तब शिव लिंग की लंबाई अपेक्षाकृत कम थी जिसे एक चमत्कार कहा जा सकता है
यहां दर्शनों के लिए दूर-दूर से दर्शनार्थी अपनी इच्छा और अभिलाषा ओं के लिए निरंतर आते रहते हैं और यहां भक्तों की अच्छी खासी भीड़ देखी जाती है।
जब मैं शिव जी के दर्शनों के लिए कुंडेश्वर को जाने वाला था तो पिता श्री ने अपने विद्यार्थी जीवन की एक यादगार पल को हमसे साझा किया और बताया कि सन 1984 में जब वह इंटरमीडिएट की परीक्षाओं की तैयारियों में संलग्न थे तो मंदिर कुंडेश्वर शिव जी के दर्शनों के लिए गए और सकारात्मक भाव को प्राप्त करते हुए एक सीमेंट बोरी का चढ़ाव करने के लिए अपने शब्द वहां गिरवी रख आए थे परंतु देश और कर्तव्य की भाग दौड़ में वह अपने इन वचनों को कुछ समय के लिए भूल गए लेकिन जैसे ही मैंने कुंडेश्वर जाने की चर्चा उनके सामने की तो उन्होंने अपनी बात को याद करते हुए मुझसे यह कहा कि यह मेरा अधूरा कार्य जरूर पूरा कर देना पिताश्री के वचनों को सुनकर मैं कुछ क्षण के लिए अचंभित और गौरवान्वित हुआ कि आज भी पिताश्री अपने इतने पुराने वचनों को आज भी याददाश्त में रखे हुए हैं
मैंने श्रद्धा और विनम्रता पूर्वक अपनी इतनी देर की गलती को मानते हुए भगवान शिव जी को क्षमा भाव से नमस्कार किया और ₹500 दान पेटी में दान किए और विलंब के लिए क्षमा मांगी।
कुंडेश्वर मंदिर परिसर में बंदरों की संख्या अधिक मात्रा में है और यहां पर लोगों अर्थात भक्तों को अपना प्रसाद बड़ा संभाल के ले जाना होता है अन्यथा बंदर छीन लेते हैं तो जाने वाले भक्तों से अनुरोध है कि इस बात का विशेष ध्यान रखें और बंदरों को खाने के लिए अलग से कुछ चने और केले जरूर ले जाएं मैंने ऐसा ही किया और बंदरों के साथ बिताया हुआ वक्त बहुत ही मनोरंजक और प्रेरणादायक था।
चूंकि मैं अपने दोस्तों के साथ कार से गया था तो वहां से लौटने में कोई परेशानी ना हुई और महरौनी जो मेरे गांव की तहसील लगती है , अपने दोस्त दीपक विश्वकर्मा के ऑफिस में जो एक ग्राम विकास अधिकारी है बैठकर अपने पुराने बचपन के दिनों को याद किया जो एक रोमांचक और यादगार पल थे
मेरे अपने पठा विजयपुरा गांव की तहसील महरौनी मे मैने एक छोटे से रेस्टोरेंट में हल्का खाना खाया और पान खाकर अपने आप को तृप्त किया।
शाम शाम 6:00 बजे तक मैं अपने गांव वापस आ गया और वहां चढ़ाए हुए प्रसाद को अपने परिवार दादा-दादी और पड़ोसियों को वितरित किया ताकि सभी लोग भगवान शिव जी के आशीर्वाद तले अपने आप को तृप्त कर सकें।
इसके बाद मैंने रात्रिभोज किया क्योंकि भगवान शिव जी की भक्ति में लीन रहते हुए मैंने दिन भर से कुछ नहीं खाया था रात्रि भोज में मैंने करी और मूंग की दाल की रोटी खाई जो मेरे बुंदेलखंड क्षेत्र की एक प्रसिद्ध और स्वादिष्ट भोज्य पदार्थ है।
इस प्रकार मेरा आज का दिन भगवान शिव जी के लिए समर्पित रहा और मैं अपनी भक्ति में लीन रहते हुए सकारात्मक भाव से परिपूर्ण रहा।
आपको मेरी यह आज की डायरी कैसी लगी
जय हिंद