हरितालिका तीज पति और पत्नी के अखंड सौभाग्य और प्रेम का पवित्र त्योहार है। हिंदी पंचांग के अनुसार तीज व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतिया को रखा जाता है। इस व्रत को कुंवारी लड़कियां भी करती हैं क्योंकि शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए इस व्रत को पार्वती जी ने शादी से पहले किया था। यही मान्यता है की ये व्रत करने से उन्हें मनचाहा वर मिलता है। व्रतरी महिलाये व युवतियां पूरी रात जागकर शिव भजन करती हैं।
ज्योतिष के आधार पर इस बार तीज का पर्व काफी शुभ संयोग को लेकर आया है। तृतिया तिथि 24 तारीख को सुबह 5:45 बजे से लग रही है।
पूजा करने का सही मुहूर्त:
प्रात:काल हरितालिका तीज- सुबह 05:45 से सुबह 08:18 बजे तक
प्रदोषकाल हरितालिका तीज= शाम 6:30 बजे से रात 08:27 बजे तक
पूजा का वक्त= 1 घंटा 56 मिनट
व्रत की पूजा विधि:
हरितालिका तीज का व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता है। इस दिन रेत या मिट्टी के शंकर-पार्वती (गौरी शंकर) बनाए जाते हैं। उनके उपर स्वेत फूलों का मंडल सजाया जाता है। पूजा गृह को केले के पेड़ों और पत्तों से सजाएं, यह निर्जल, निराहार व्रत है, जिसमें प्रसाद के रूप में फलादि, सुहाग का सामान जैसे लाल रंग और सिंदूर काली चूड़ियां ही चढ़ाए जाते हैं। व्रती स्त्रियां रात्रि जागरण कर, भजन-कीर्तन कर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। दूसरे दिन भोर होने पर नदी में शिवलिंग और पूजन सामग्री का विसर्जन करने के साथ यह व्रत संपन्न होता है।
विशेष अखंड सौभाग्य योग:
यथाशक्ति अनुसार किसी सुहागिन स्त्री को सुहाग का सामान भेंट करने का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इससे माता पार्वती को प्रसन्न किया जाता है और मनचाहा पति प्राप्त होता है। पवित्रता और श्रद्धा के साथ इस व्रत को करने पर आपका भाग्य बदल सकता है ऐसा इस वर्ष की ग्रह स्थिति के कारण हो रहा है, अखंड सौभाग्य योग है।
शुभ संयोग:
जिन महिलाओं के पति के साथ किसी तरह कि समस्या है तो उन्हें बहुत ही श्रद्धा और पवित्रता के साथ इस व्रत को करने पर विशेष लाभ प्राप्त होगा ऐसी ग्रहों की विशेष स्थिति की वजह से होगा।
हरितालिका व्रत कथा:
मान्यता हैं कि मां पार्वती ने जंगल में जाकर भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए १०८ सालों तक बिना अन्न और पानी पिये लगातार तप किया था (१२ वर्ष भी उल्लेख मिलता है) जिसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकारा था। इसी से यह पर्व पवित्रता तपस्या और निष्ठा का है जिसको तपस्या और निष्ठा के साथ स्त्रियां रखती है, यह व्रत बहुत कठिन है, क्योंकि इसे बिना पानी के रखा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से सात जन्मों तक महिलाओं को उनके पति का साथ और प्यार मिलता हैं।
विशेष ध्यान रखें:
इस व्रत को एक बार शुरू करने पर किसी भी वजह से तोड़ना नहीं चाहिए यदि किसी सुहागिन स्त्री या किशोरी का व्रत रखना संभव नहीं हो पा रहा है किसी बीमारी या अन्य वजह से तो आपके पति भी इस व्रत को रख सकते हैं आपके स्थान पर या कोई महिला भी रख सकती है आपके व्रत की हानि नहीं होगी।
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