यह सत्य नहीं कि भगवान् श्रीरामने बाली को छल से मारा अन्यथा बाली उनकी आधी शक्ति खीच लेता ! आधी शक्ति खीच लेने का अर्थ भगवान् की पूर्ण शक्ति का परिमाण जान लेना ,क्या कोई जानता है भगवान् की पूर्ण शक्ति का परिमाण कितना है ? जो बाली आधी शक्ति खीच लेता –
भगवान् श्रीराम जी ने अपने बल से बाली को मारा था छल से नहीं ,देखिये पहले भगवान् श्रीराम जी के बल की सुग्रीव ने परीक्षा ली थी तब युद्ध किया था बाली से !
सुग्रीव असुर दुंदुभी की ‘अस्तिनिचय’ और सात ताल वृक्षों को भगवान् श्रीराम जी को दिखाते हैं और कहते हैं जो इन अस्थि पञ्जर को उठाने में समर्थ होगा और जो एक ही बाणसे इन वृक्षों को काट दे वो ही युद्ध में बाली का वध कर सकता है !
“एतदस्यासमं वीर्यं मया राम प्रकाशितम् ! कथं तं वालीनं हन्तुं समरे शक्ष्यसे नृप ( वाल्मीकिरामायण किष्किन्धा०११/६८)
तब भगवान् श्रीराम दुंदुभीके अस्थिपञ्जर को पादांगुष्ठ से दश योजन दूर फैंक देते हैं ! यहाँ स्पष्ट कहा है "वालीनं हन्तुं समरे ” अर्थात् युद्ध में !
सात ताल वृक्षोंको भी एक बाणसे भेदन कर देते हैं और बाण पुनः उनके पास आ जाता है ।“भित्वा तालान्गिरिप्रस्थं सप्तभूमिं विवेश ह …..पुनस्तूणं तमेव प्रवेश प्रविवेश ह (वा०रा०कि०१२/३-४)
अब यह तो निश्चित हो गया कि श्रीराम जी के बल की परीक्षा बाली को युद्ध में मारने के लिये हुई , छलसे मारने के लिये तो इसकी आवश्यकता ही नहीं थी !
बालकाण्डमें कहा है -कि श्रीरामने बाली को युद्ध में मारकर सुग्रीव को राज्य दिलाया था
*“ततः सुग्रीववचनाद्धात्वा वालीनमाहवे !
सुग्रीवमेव तंद्राज्ये राघवः प्रत्यपादयत् !! (बा०सर्ग १)
सुग्रीवकी ललकार पर बाली ने पहले सुग्रीव से युद्ध किया फिर जब सुग्रीव घायल हो गए तब श्रीराम जी से युद्ध किया ! एक तरफ बाली अपने वानर सैनिकों के साथ श्रीराम जी से युद्ध कर रहा था था तो दूसरी तरफ श्रीराम जी की तरफ केवल सुग्रीव थे जो घायल हो चुके थे ! बाली वध के बाद जब बाली पत्नी तारा बालीके सैनिकों को डाँटती है तब वानर कहते हैं
“जीवपुत्रो निवर्तस्व पुत्रं राक्षस्व चांगदम् !
अन्तको रामरूपेण हत्वा नयति वालीनम् !!
क्षिप्तान् वृक्षान् समाविध्य विपुलाश्च तथा शीला: !
वाली वज्रसमैर्वाणैर्वज्रेणेव निपातितः !!
अभिभूतमिदं सर्वं विद्रुतं वानरं बलम् !
अस्मिन् प्लवगशार्दूले हते शक्रसमप्रभे !!
( वाल्मीकिरामायण किष्किन्धा ० १९/११-१३)
आपका पुत्र अंगद जीवित है ;उसी की रक्षा कीजिए ! यमराज ने राम जी के रूप में आकर बाली का वध किया ! उसने बाली का वध किया ,उन्होंने वाली द्वारा फैंके हुए वृक्ष और पत्थर विदीर्ण किये और बाली को मारा है ! बाली के मरने के बाद समस्त वानर-सेना भाग गयी !”
इस वर्णन से स्पस्ट होता है बाली ने भगवान् श्रीराम के ऊपर पत्थर और पेड़ों से आक्रमण किये थे जिसे श्रीराम जी ने बाणों से काटकर खण्डित कर दिए और बाली का वध किया अब यदि छल से मारा होता तो बाली श्रीराम जी के ऊपर वृक्षों और पत्थरों से आक्रमण कैसे करता ?
बाली के मरने के बाद उसके सैनिक भी भाग गए इससे सिद्ध होता है बाली अकेला नहीं सैनिकों सहित युद्ध कर रहा था !
हनुमान् जी दो जगह बाली वध का वर्णन करते हैं और दोनों जगह श्रीराम जी के हाथों युद्ध में बाली मारा गया का वर्णन मिलता है !
(१) सीताजी को लङ्का में बताते हैं और (२)दूसरी बार भरतजी को अयोध्या लौटने पर –
“वालीनं समरे हत्वा महाकायं महाबलम् ” ( (६/१२६/३८)
इससे यह सिद्ध होता है कि श्रीराम जी ने बाली का वध धोखे से नहीं अपितु युद्ध करके किया था !
वृक्ष के पीछे छिपकर युद्ध का कारण
कोई भी युद्ध हो प्राचीन या आधुनिक युद्ध के दो भाग हैं , १ आक्रमण (अटैक) ,२ रक्षात्मक(डिफेंस) ! शत्रु पर अस्त्र शास्त्रोंसे प्रहार करना आक्रमण (अटैक) है ,जिसमें शत्रु व् शत्रु सेना का संहार किया जाता है ! और दूसरा रक्षात्मक (डिफेंस ) जिसके द्वारा शत्रु के अस्त्र शस्त्रों के प्रहार से स्वयं की रक्षा की जाती है , प्राचीन समय में रथ ,ढाल व कवच के द्वारा रक्षात्मक युद्ध किया जाता था आधुनिक युद्धों में भी सैनिक सीमा पर आमने सामने से नहीं लड़ते अपितु सुरक्षित स्थान पर छिपकर ही लड़ते हैं ! जिससे शत्रु के सहज शिकार न हो जाएं ! भगवान् श्रीरामके पास न तो रथ था न ही ढाल और कवच ही इसलिए बाली द्वारा फैक गए वृक्षों शिलाओं से सुरक्षित रहने के लिये एक वृक्ष का सहारा लिया ! इस तरह श्रीराम ने कोई छल या धोखा नहीं किया बाली वध में ! युद्धके नियमों के अनुसार ही बाली वध किया था ।
जय जय सियाराम जी
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