Antrashtrya happeness day ki shubhkamnaye

in antrashtrya •  2 years ago 

परिवार यूं ही नहीं बनते बनाने के लिए लिए कभी झुक जाना पड़ता है कभी रुक जाना पड़ता है आंख दिखाने से कोई झुकता या रुकता नहीं है आंखें झुका लेने से भी बहुत कुछ रुक जाता है।
जिन्हें परिवार चाहिए उन्हें नाराज होने की अदा नहीं आती दौर ही कुछ ऐसा है कोई नहीं मनाता रुठों को सब अपने आप में व्यस्त हैं ये सोचकर तुम रुठ गई मैं छूट गई।
हंसते खिलखिलाते लोगों को सब पसंद करते हैं डाली पर तो मुरझा गए फूलों पर भी किसी का ध्यान नहीं जाता हंसते हंसाते रहिए मुस्कुराते हुए अपनी और अपनों की जान और शान बढ़ाते रहिए।
खुश रहने के लिए बहाना नहीं ढूंढते खुशी कहीं किसी बाजार में मोर नहीं मिलती।
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नफा और नुकसान सिर्फ दो वजहें हैं बस अब रिश्ते की लगाव और भाव तो अब सिर्फ शब्द बनकर रह गए हैं।

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