परिवार यूं ही नहीं बनते बनाने के लिए लिए कभी झुक जाना पड़ता है कभी रुक जाना पड़ता है आंख दिखाने से कोई झुकता या रुकता नहीं है आंखें झुका लेने से भी बहुत कुछ रुक जाता है।
जिन्हें परिवार चाहिए उन्हें नाराज होने की अदा नहीं आती दौर ही कुछ ऐसा है कोई नहीं मनाता रुठों को सब अपने आप में व्यस्त हैं ये सोचकर तुम रुठ गई मैं छूट गई।
हंसते खिलखिलाते लोगों को सब पसंद करते हैं डाली पर तो मुरझा गए फूलों पर भी किसी का ध्यान नहीं जाता हंसते हंसाते रहिए मुस्कुराते हुए अपनी और अपनों की जान और शान बढ़ाते रहिए।
खुश रहने के लिए बहाना नहीं ढूंढते खुशी कहीं किसी बाजार में मोर नहीं मिलती।
नफा और नुकसान सिर्फ दो वजहें हैं बस अब रिश्ते की लगाव और भाव तो अब सिर्फ शब्द बनकर रह गए हैं।