ससुराल पहुँचकर रेखा का दिल डर के मारे तेज़ी से धड़क रहा था,, "नया घर ,नया माहौल, नये रिश्ते..कैसे रहेगी वो?" रह-रहकर उसे अपनी सहेली कविता की बात भी याद आ रही थी.."रेखा,यूपी वाले बहुत तेज़ होते हैं..ख़ासकर वहाँ की सासें तो बहुत ही दकियानूसी, तानाशाह और लालची होती हैं। कई तो दहेज़ ना मिलने पर ज़िंदा ही जला देती हैं..तू बहुत संभलकर रहना।"
उधर माधुरी जी का मन भी नई बहू को लेकर आशंकित था "आजकल की बहुओं को आये चार दिन नही बीतते कि लड़ाई झगड़ा,अलगाव, सब चालू कर देती हैं,,यहाँ तक कि पुलिस थाना भी करने लगती हैं। पता नहीं उसकी बहू कैसी होगी,,,?"
लेकिन फिर उन्होंने अपने मन को शाँत किया है .."ये क्या ऊलजुलूल सोचे जा रही है? ज़रूरी तो नही कि सब बहुयें ख़राब ही होती हैं?अच्छी भी तो होती हैं और वैसे भी वह बेचारी अपना सब कुछ छोड़कर आई है... अभी तो उसे ही अपनेपन की ज़रूरत है।" सोचते हुए माधुरी रेखा के कमरे में गईं तो वह हड़बड़ाकर उठकर खड़ी हो गई।
"अरे रे, आराम से बैठी रहो" बहू के सिर पर हाथ फेरते हुए माधुरी जी उसके पास ही बैठ गईं.."बेटा,यदि तुम्हें कोई आपत्ति न हो तो तुमसे कुछ ज़रूरी बात करना चाहती हूँ!"
"जी,जी,,कहिये" रेखा धीरे से बोली।
" जानती हूँ कि तुम्हें डर लग रहा होगा कि ससुराल वाले कैसे होंगे? घर का माहौल कैसा होगा?... है ना? ये स्वाभाविक है। मैं भी जब ब्याह कर आई थी तो मुझे भी बहुत डर लगता था। लेकिन तुम बिल्कुल नही डरना,मैं हूँ तुम्हारे साथ। पर जैसा तुम्हें लग रहा है, ऐसे ही मुझे भी डर लग रहा है कि "पता नही मेरी बहू का स्वभाव कैसा होगा? अब तक तो मैं अपने मन का काम करती हूँ,घर के सभी सदस्य शाँति से,मिलजुल कर रहते हैं, लेकिन अब सब कुछ बदल ना जाये।"
" इनको डर लग रहा है और वो भी मुझसे?" रेखा ने आश्चर्य से देखा तो माधुरी मुस्कुरा दी।
"हाँ बहू! जब एक ही माँ से पैदा हुए दो बच्चों के स्वभाव भिन्न-भिन्न होते हैं तो फिर तुम तो अलग ही परिवेश से आई हो। इसीलिये हमें एडजस्ट करना होगा...यानि हम दोनों ही को" उसके हाथों को थामते हुए वह दृढ़ शब्दों में बोलीं "यदि तुम्हें मुझसे कभी या किसी भी तरह की शिकायत हो तो बेझिझक बताना, मैं उसे सुधारने की पूरी कोशिश करूँगी।लेकिन हाँ,इसी तरह मैं तुम्हें बताऊंगी। गलती करोगी तो समझाऊँगी...ज़रूरत हुई तो डाँटूगी भी। तुम्हें कभी मुझ पर गुस्सा आये तो भले ही झगड़ लेना,पर अपनी माँ समझकर माफ़ भी करना ,कोई बात गाँठ बांधकर नही रखना। एक बात और,,,मैंने बेटे को भी हमेशा यही समझाया है कि पति हो या पत्नी..यदि किसी एक को गुस्सा आये तो दूसरा शाँत हो जाये.. तभी ज़िंदगी की गाड़ी अच्छे से चलती है,, वरना ज़र्क लगने में देर नही लगती है। आज मैं यही बात तुमसे भी कहती हूँ।"
रेखा उन्हें देखती ही रह गई। एक बेहद सुलझी हुई सासु माँ को। जिन्होंने कितनी अच्छी तरह से समझाकर उसका डर दूर कर दिया
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