"गीता इतने घरों में है,
समझता कौन है?
गीता पर इतनों ने बोला है
समझा पाया कौन है?"
गीता पर इतनी टीकाएँ की गई हैं,
उन सब के प्रति सम्मान रखते हुए
हम सविनय यह कहना चाहते हैं कि
अधिकांश टीकाओं व भाष्यों में गीता के
श्लोकों का विकृत अर्थ किया गया है।
विशेषकर उन टीकाओं में,
जो आजकल बहुत प्रचलित एवं वितरित हैं।
इस कारण गीता का वास्तविक अर्थ
जनता तक पहुँच ही नहीं पाया।
हमारे अंधविश्वासों, दुर्बलताओं
व अज्ञान का ये एक बड़ा कारण है।
गीता वेदांत की प्रस्थानत्रयी का एक स्तम्भ है।
आचार्य प्रशांत गीता का वास्तविक व
वेदान्तसम्मत अर्थ आप तक ला रहे हैं।
जीवन छोटा है, चूकिए मत।