साक्षात आदिशक्ती _ हमारी गुरू माँ
………सर्व प्रथम आपको यह जानना है कि आपकी गुरू कौन है ? _"साक्षात आदिशक्ती |" हे परमात्मा ! यह बहुत बड़ी बात है |
………………………आदिशक्ती किसी को भी गुरू रुप में प्राप्त नहीं हुई | आदिशक्ती में परमात्मा की सभी सक्तियाँ है | …गुरू रुप में साक्षात आपकी माँ बैठी है | ये कार्य छः मई 1970 से पूर्व होना आवश्यक था क्योंकि उस वर्ष का यह दिन प्रलय का दिन था | अन्तिम समय पर, पाँच मई 1970 को ये कार्य किया गया | इस सबका निर्णय पहले ही कर लिया गया था देवता अत्यन्त कार्य-कुशल एवं आज्ञाकारी हैं, मुझे भली - भाँती जानते हैं, मेरे बाल की नोक तक पहचानते हैं |
सभा में मैंने कहा कि "सहस्रार पर मुझे महामाया बनना होगा महामाया होना होगा मुझे कुछ ऐसा होना होगा,मुझे कुछ ऐसा बनना होगा ताकि देवताओं के अतिरिक्त कोई मुझे पहचान न सके |
अब इस महामाया को पृथ्वी पर आना था | अपने वास्तविक रुप में आदिशक्ती को नहीं | आदिशक्ती का शुद्ध रुप तो बहुत बड़ी बात है,अतः आदिशक्ती ने महामाया का आवरण पहन लिया |
श्री आदिशक्ती ने कहा था कि, "मैं मानव मात्र की माँ के रुप में एक सर्वमान्य व्यक्ति के रुप में पृथ्वी पर जाऊँगी, जिसे जीवन की सभी चिन्तायें, उदासियाँ और खुशियाँ हो | मैं हर स्थिति को सहन करूँगी "
श्री आदिशक्ती की यह घोषणा देवी - देवताओं के लिये वरदान थी |
संसार में परमेश्वर प्राप्ति के लिये तथा कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने के लिये किसी सद्गुरू रूपी माँ की कार्य पद्धती में दो प्रकार है - एक सद्गुरू तत्व, दूसरा मातृप्रेम | ऐसी माँ का ह्रदय प्रेम शक्ति से व परमात्मा की करुणा से पूरा - पूरा भरा हुआ रहता है |
इसीलिये इस जन्म में मैंने गुरू का स्थान स्वीकृत किया है | गुरू उसे मानिये जो स्वयं तो पारस हैं ही, दूसरों को छुते ही केवल सोना ही नहीं बनाता उस भी पारस बना देता है | जैसा खुद है वैसा ही दूसरों को भी बना देता है इसीलिये ये माँ स्वरुप हैं
……………मैं जो बात कह रही हूँ (ज्ञान दे रही हूँ) उसमें से बहुत सी बातें आपको किताबों (ग्रंथों) में नही मिलेगी क्योंकि मैं ही जानती हूँ और आपको बता रही हूँ |
प•पू•श्रीमाताजी १७•२•१९८१🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹