ससुराल में आई नयी बहू की जिंदगी उसे हर दिन उलझन और ससुराल कैदखाना नजर आता है सारी समस्याओं की जड़ उसकी सोंच है पिता का घर पिता का ही है जिसेक लिए उस घर मे मां आई है उसके पति का घर उसका अपना घर है जिसे जिंदगी भर वो नहीं कहती मेरा घर हमेशा ससुराल ही कहती है।
जिस दिन वो यह समझ ले यह मेरा घर है आधी समस्याओं का अंत तुरंत हो जाता है जिस दिन यह समझ ले यह सास ससुर नहीं मेरे माता पिता भी हैं जिन्होनें मुझे जीवन साथी के रुप में अपना भविष्य सौप दिया है। पापा की परी बनकर जिस स्वच्छंदता का लाभ अपनी जिदों को पुरी कर उठाती आ रही थी अब तक और माता-पिता भी कलेजे पर पत्थर रखकर जिस बेटीकी मनमानियों को गलत होते हुए भी झेल जाते थे उसको वह उनका प्यार और अपना अधिकार समझ कर खुश होती थी बार बार उसी पल को जीने की जिद मन में आक्रोश असंतोष पैदा कर परिवार का बिखराव का कारण तक बना देते हैं।
बेटियों को आजादी दें किन्तु संस्कारों से विचारों से नहीं पराये घर जाएगी यह कहकर मत पालिए अपने घर जाएगी यह कहकर पालिए यह तेरा घर नहीं है कह कहकर बेटीयों को पालने वाली मां के अंदर बेटी की शादी के बाद ना जाने कहां से इतना लाड़ आ जाता है कि बेटी से फोन पर दिन रात बात करने के लिए चिपकी पड़ी रहती है शायद बातों बातों में कुछ तो मसाला मिल जाए उसके दिमाग में जहर घोलने का मौका मिल जाए जिससे वह परिवार से मानसिक विद्वेष और दूरी बनाने में कामयाब हो जाए सोंचनीय हैं जो मां आजीवन अपने सास ससूर से दूरी बनाकर रही बेटी को कब परिवार में घूलने मिलने देगी यह ध्यान रखें बेटी से जयादा महतवपूर्ण बहू होती है परिवार बहुओं से बनता है बेटियों से नहीं अगर बेटियों से बनता तो माता जानकी जनकपुरी में रहती जंगलों में नहीं भटकती।
इसलिए अपनी पुत्र वधू की जगह किसी और की पुत्र वधू को यानि अपनी विवाहिता बेटी को महत्व देकर अपने घर में दखलंदाज़ी करने और उसके अपने घर मे मनमानी करने का अवसर न दें विलेन नहीं एक अच्छे माता पिता बनें।
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